जयपुर । राजस्थान पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित ‘कल्चरल डायरीज’ कार्यक्रम का दूसरा दिन जयपुर के ऐतिहासिक अल्बर्ट हॉल में पारंपरिक लोकनृत्यों की छटा के साथ संपन्न हुआ। इस सांस्कृतिक संध्या में धरोहर संस्था, उदयपुर के लोक कलाकारों ने प्रदेश की विविध लोक नृत्य शैलियों का मनोहारी प्रदर्शन किया गया। गौरतलब है कि कल्चरल डायरीज कार्यक्रम की
जयपुर । राजस्थान पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित ‘कल्चरल डायरीज’ कार्यक्रम का दूसरा दिन जयपुर के ऐतिहासिक अल्बर्ट हॉल में पारंपरिक लोकनृत्यों की छटा के साथ संपन्न हुआ। इस सांस्कृतिक संध्या में धरोहर संस्था, उदयपुर के लोक कलाकारों ने प्रदेश की विविध लोक नृत्य शैलियों का मनोहारी प्रदर्शन किया गया।
गौरतलब है कि कल्चरल डायरीज कार्यक्रम की प्रेरणा स्रोत राजस्थान की उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी हैं, जिनके मार्गदर्शन में राज्य पर्यटन और संस्कृति के समन्वय को नई ऊंचाइयों तक पहुंच रहा है। उन्होंने पारंपरिक कलाओं को संरक्षित करने और लोक कलाकारों को मंच प्रदान करने के उद्देश्य से इस आयोजन को निरंतर प्रोत्साहित किया है।
धरोहर संस्थान उदयपुर के कलाकारों ने शनिवार की शाम दर्शकों के समक्ष घूमर, चरी, भवाई, तेरहताली, कालबेलिया, गवरी और मयूर नृत्य जैसे पारंपरिक नृत्य प्रस्तुत किए जिनमें राजस्थान की सांस्कृतिक विविधता और जीवंत परंपराएं मुखरित हुईं।
कार्यक्रम का शुभारम्भ गणेश वंदना से किया गया। उसके पश्चात स्वागत गीत राग खमाज पर आधारित केसरिया बालम आवो.. नी पधारो म्हारे देस गीत पर नृत्यांगना द्वारा राजस्थानी लोक नृत्य की प्रस्तुति ने कार्यक्रम की शुरुआत से ही दर्शकों को अपने मोहपाश में कैद कर लिया।
इसके पश्चात शादी- ब्याह के अवसर गुर्जर समुदाय की महिलाओं द्वारा किया जाने वाला पारम्परिक नृत्य चरी नृत्य प्रस्तुत किया गया, जिसमें महिला कलाकाकरों ने सिर पर जलती चरी लेकर योग मुद्राओं को नृत्य स्वरूप में ढाल कर आकर्षक प्रस्तुतियां दी, जिससे दर्शकों की भरपूर तालियां मिली।
इसके बाद मेवाड प्रान्त में भील सुमदाय द्वारा भगवान शिव व देवी की उपासना के दौरान किए जाने वाले गवरी नृत्य की प्रस्तुति हुई, इस प्रस्तुति आस्था औऱ विश्वास के साथ साथ प्रकृति और इंसान के बीच के संबंध को बखूबी दर्शाया गया। भील समुदाय द्वारा की जाने वाली पारम्परिक रूप सज्जा ने इस नृत्य को जीवन्तता प्रदान की।
इसके बाद यूनेस्को द्वारा अमूर्त नृत्य घोषित किया गया कालबेलिया नृत्य की प्रस्तुतियों ने दर्शकों को थिरकाया। इसके बाद लोक देवता बाबा रामदेव (रामापीर) की उपासन में किया जाने वाला तेरहताली नृत्य प्रस्तुत किया गया, जिसके तहत महिला कलाकारों ने अपने परम्परा गत ताल वाद्यों अद्भुत समन्वय दिखाया। भवाई नृत्य में कलाकारों ने सिर पर एक के ऊपर एक रखी गई मटकों को संतुलन में रखते हुए नृत्य कर दर्शकों को चकित कर दिया। अंत में प्रस्तुत मयूर नृत्य में मोर की चाल और मुद्राओं को नृत्य के माध्यम से दर्शाया गया, जिसने दर्शकों को अभिभूत कर दिया।
Leave a Comment
Your email address will not be published. Required fields are marked with *